मीराबाई के सुबोध पद

12. राग देश बिलंपत

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दरस बिनु दूखण लागे नैन। जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।। सबद सुणत मेरी छतियां कांपे, मीठे लागे बैन। बिरह कथा कांसूं कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।। कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन। मीरा के प्रभू कब र मिलोगे, दुखमेटण सुखदैन।।12।।

शब्दार्थ /अर्थ :- सुणत =याद आते ही। बहगई करवत =जैसे आरी चल गई। मेटण = मेटनेवाले। दैण =देनेवाले।