मीराबाई के सुबोध पद

18. राग कोसी कान्हरा

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कोई कहियौ रे प्रभु आवन की, आवन की मनभावन की।। आप न आवै लिखि नहीं भेजै, बाण पड़ी ललचावन की। ए दोउ नैण कह्यौ नहीं मानै, नदियां बहै जैसे सावन की।। कहा करूं कछु नहीं बस मेरो, पांख नहीं उड़ जावन की। मीरा कहै प्रभु कब र मिलोगे, चेरी भई हूं तेरे दांवन की।।18।।

शब्दार्थ /अर्थ :- कहियौ रे = आकर संदेशा दे। दांवन = दामन, का पल्ला।