मीराबाई के सुबोध पद

31. राग आनंद भैरों

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सखी, मेरी नींद नसानी हो। पिवको पंथ निहारत सिगरी रैण बिहानी हो।। सखिअन मिलकर सीख दई मन, एक न मानी हो। बिन देख्यां कल नाहिं पड़त जिय ऐसी ठानी हो।। अंग अंग व्याकुल भई मुख पिय पिय बानी हो। अंतरबेदन बिरह की कोई पीर न जानी हो।। ज्यूं चातक घनकूं रटै, मछली जिमि पानी हो। मीरा व्याकुल बिरहणी सुद बुध बिसरानी हो।।31।।

शब्दार्थ /अर्थ :- बेहानी = बीत गई। मानी =अच्छी लगी। वेदन = वेदना, व्यथा। बिसरानी = भूल गई।