मीराबाई के सुबोध पद

4. राग आसाबरी

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प्यारे दरसन दीज्यो आय, तुम बिन रह्यो न जाय।। जल बिन कमल, चंद बिन रजनी। ऐसे तुम देख्यां बिन सजनी।। आकुल व्याकुल फिरूं रैन दिन, बिरह कलेजो खाय।। दिवस न भूख, नींद नहिं रैना, मुख सूं कथत न आवै बैना।। कहा कहूं कछु कहत न आवै, मिलकर तपत बुझाय।। क्यूं तरसावो अंतरजामी, आय मिलो किरपाकर स्वामी।। मीरां दासी जनम जनम की, पड़ी तुम्हारे पाय।।

4।। शब्दार्थ /अर्थ :- रजनी =रात्रि। सजनी =दासी। कलेजो खाय = बिरह कलेजे को मरण जैसी पीड़ा पहुंचा रहा है। बैना = बचन। पाय =चरण।