मीराबाई के सुबोध पद

44. राग मांड

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माई री मैं तो लियो गोविन्दो मोल। कोई कहै छाने कोई कहै चौड़े, लियो री बजंता ढोल।। कोई कहै मुंहघो, कोई कहै सुंहघो, लियो री तराजू तोल। कोई कहै कालो, कोई कहै गोरो, लियो री अमोलक मोल।। कोई कहै घर में , कोई कहै बन में, राधा के संग किलोल। मीरा के प्रभु गिरधर नागर, आवत प्रेम के मोल।।5।।

शब्दार्थ /अर्थ :- माई =सखी। छाने =छिपकर। चौड़े =सबके सामने। बजंता ढोल =ढोल बजाकर प्रकट होकर। मुंहघो =महंगा। सुंहघो =सस्ता। अमोलक =अनमोल। आंखि खोल =ठीक तरह से देखभाल कर। किलोल =आनन्द, उल्लास।