मीराबाई के सुबोध पद

45. राग तिलंग

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मन रे परसि हरिके चरण।। सुभग सीतल कंवल कोमल, त्रिबिध ज्वाला हरण। जिण चरण प्रहलाद परसे, इंद्र पदवी धरण।। जिण चरण ध्रुव अटल कीन्हें, राख अपनी सरण। जिण चरण ब्रह्मांड मेट्यो, नखसिखां सिरी धरण।। जिण चरण प्रभु परसि लीने, तरी गौतम घरण। जिण चरण कालीनाग नाथ्यो, गोप लीला करण।। जिण चरण गोबरधन धार््यो, गर्व मघवा हरण। दासि मीरा लाल गिरधर, अगम तारण तरण।।6।।

शभ्दार्थ :- त्रिविध ज्वाला =तीन प्रकार के दुःख; आध्यात्मिक, आधिदैविक,आधिभौतिक जिण =जिन। अटल =अचल। भेट्यो =व्याप्त कर लिया। गौतम-घरण =गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या। मघवा = इन्द्र। अगम …तरण =अपार संसार-सागर से पार करानेवाले।