मीराबाई के सुबोध पद

7. राग प्रभाती

…………………….

राम मिलण रो घणो उमावो, नित उठ जोऊं बाटड़ियाँ। दरस बिना मोहि कछु न सुहावै, जक न पड़त है आँखड़ियाँ।। तड़फत तड़फत बहु दिन बीते, पड़ी बिरह की फांसड़ियाँ। अब तो बेग दया कर प्यारा, मैं छूं थारी दासड़ियाँ।। नैण दुखी दरसणकूं तरसैं, नाभि न बैठें सांसड़ियाँ। रात-दिवस हिय आरत मेरो, कब हरि राखै पासड़ियाँ।। लगी लगन छूटणकी नाहीं, अब क्यूं कीजै आँटड़ियाँ। मीरा के प्रभु कब र मिलोगे, पूरो मनकी आसड़ियाँ।।7।।

शब्दार्थ /अर्थ :- घणी =घनी, बहुत अधिक। उमाव = उमंग। बाटड़ियाँ = बाट, राह। जक =चैन। फाँसड़ियाँ = फांसी। साँसड़ियाँ =सांसें। पासड़ियाँ =समीप। आँटड़ियाँ =आपत्ति, बाधा। आसड़ियाँ = आशाएँ।